ये अवसर उन्हें तब मिला जब एक होनहार नवयुवक ने 1988 में संयुक्त राष्ट्र संघ में इसराइल के राजदूत पद से इस्तीफ़ा देकर राजनीति में उतरने
का फ़ैसला किया. ये कोई और नहीं बल्कि नेतन्याहू थे जिन्होंने इसराइली
नीतियों का संयुक्त राष्ट्र संघ में बख़ूबी बचाव करके अपने जन मानस के दिल में जगह बना ली थी.
मगर चुनावी मैदान में उसे विश्वसनीय लोगों की
ज़रूरत थी जिसकी भरपाई लिबरमन ने की. जी तोड़ मेहनत के बाद इस जोड़ी ने
नेतन्याहू के लिए लिकुड की सूची में शीर्ष पर स्थान निश्चित किया.
इस
दौरान एक और महत्वपूर्ण घटना हुई जिसने लिबरमन की न सिर्फ़ अहमियत बढ़ाई
बल्कि उनके आज की सफलता का मार्ग खोला. 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ और तकरीबन 10 लाख यहूदी वहां से इसराइल आए. आज की तारीख़ में विघटित सोवियत संघ से आये रूसी मूल के लोगों की इसराइल में आबादी तकरीबन 20 प्रतिशत है
और ये ही लिबरमन के राजनैतिक सफलता का मुख्य कारण है.
लिबरमन आज भी इसराइल के मूल निवासियों की तरह हिब्रू नहीं बोलते और उनकी बोली पर रूसी
भाषा का गहरा असर है. मगर उनके राजनैतिक करियर पर इसका कोई विपरीत असर नहीं
पड़ा. अपने अति विवादास्पद वक्तव्यों की वजह से उन्होंने अरबों से नफ़रत करने वाले कुछ चरमपंथी यहूदियों के मन में भी अपने लिए जगह बना ली है.
कड़े परिश्रम के बाद भी मोशे आर्न्स से उन्हें ज़्यादा मदद नहीं मिली और
लिबरमन लिकुड पार्टी वर्कर्स यूनियन में एक निम्न स्तरीय पद ही अपने लिए जुटा पाए. मगर इसी दौरान उन्होंने अपना पूरा ध्यान नेतन्याहू की और
केंद्रित किया.
कुछ लोग बताते हैं कि लिबरमन चुनावी सभा के पहले
निर्धारित जगह पर पहुँच जाया करते थे और अपने नेता के पसंद का कपड़ा तक आइरन करवाकर तैयार रखते थे. उन्होंने नेतन्याहू के लिए रूसी मूल के लोगों
में समर्थन जुटाया और उन्हें लिकुड पार्टी में भी शामिल करवाया.
वो याददाश्त के बेहद तेज़ माने जाते हैं और उन्होंने समर्थकों की पूरी सूची बना रखी थी. अब बस सही समय का इंतज़ार था.
ये
अवसर तब आया जब 1993 में लिकुड पार्टी में पहली बार प्राइमरीज़ हुए और सभी
पार्टी के सदस्यों ने अपना अध्यक्ष चुनने के लिए वोट दिया. लिबरमन के
वर्षों की मेहनत काम आयी और उन्होंने अब तक स्थापित संपर्क का नेतन्याहू के
पक्ष में इस्तेमाल किया. नेतन्याहू पार्टी के अध्यक्ष चुने गए और लिबरमन को पार्टी का सीईओ बनाया गया.
पहली बार राजनीति में उन्हें बेहद अहम कार्यभार मिला और उन्होंने इसे बखूबी निभाया. पार्टी गहरे आर्थिक
समस्या से जूझ रही थी. बताया जाता है की लिबरमन ने कठिन परिश्रम के ज़रिये
पार्टी को संकट से निकाला.
नेतन्याहू ने भी इस दौरान अपने कूटनीतिक जीवन के दौरान अमरीका में बनाये संबंधों का उपयोग करते हुए पार्टी के लिए
काफ़ी पैसे इकट्ठा किया. अब नेतन्याहू और लिबरमन की जोड़ी अगली चुनौती के
लिए तैयार थे.
इसराइल में प्रधानमंत्री पद के लिए सीधे चुनाव करवाने का क़ानून पास हो गया था. नेतन्याहू ने अपनी पार्टी का विरोध करते हुए इस प्रस्ताव का समर्थन किया था. उन्हें उम्मीद थी की एक दिन वो लिकुड पार्टी के उम्मीदवार होंगे और पार्टी के शीर्ष नेताओं के हट जाने के बाद 1996 में
उन्हें ये मौका हाथ लगा.
इसराइल के प्रधानमंत्री इट्ज़हैक रॉबिन के
हत्या किए जाने के बाद लिकुड पार्टी का उम्मीदवार होकर प्रधानमंत्री पद के
लिए चुनाव लड़ना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने से कम नहीं था. मगर नेतन्याहू
ने जुर्रत की और लिबरमन के कुशल मैनेजमेंट के बदौलत एक निश्चित हार को जीत में बदल दिया.
1996 में जब नेतन्याहू पहली बार प्रधानमंत्री बने तब लिबरमन ने उनके
कार्यालय में डायरेक्टर जनरल के अहम पद को संभाला. 18 महीनों तक लिबरमन प्रधानमंत्री कार्यालय के सबसे अहम पद पर कार्यरत रहे मगर उसके बाद
अविभाज्य मानी जाने वाली इस जोड़ी में खटास आ गई.
नेतन्याहू ने
लिबरमन पर ग़लत सलाह देकर उनकी सरकार को असफल बनाने का इलज़ाम लगाया तो
लिबरमन ने नेतन्याहू को कड़े फ़ैसले लेने में असक्षम नेता बताया.
लिबरमन ने प्रधानमंत्री कार्यालय से निकलने के बाद व्यापार का रुख़ किया और माना
जाता है कि उन्होंने बहुत धन अर्जित किया. ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से धन
अर्जित करने के भी उन पर आरोप लगे जिसकी वजह से उन्हें लम्बे वक़्त तक
पुलिस की जांच से भी गुज़रना पड़ा.
मगर 1999 में वह फिर राजनीति के मंच पर उतरे तो अपनी नयी पार्टी के ज़रिये, जो तब से अब तक उनकी ही
मिल्कियत मानी जाती है और उसका प्रभाव इसरायली राजनीति में कभी कम नहीं
हुआ.